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Sukhdev Thapar Biography in Hindi

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सुखदेव थापर का जीवन परिचय in Hindi

आइए हम Sukhdev Thapar बायोग्राफी इन हिंदी में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य नायक जो सुखदेव थापर थे उनके बारे में जानते हैं.

सुखदेव थापर स्वतंत्रता सेनानी थे, देव थापर का जन्म 15 मई सन 1907  गोपरा लुधियाना पंजाब में हुआ था,  इनके पिता का नाम रामलाल थापर था (जो अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर फैसलाबाद, पाकिस्तान में रहते थे) और माता  रल्ला देवी (धार्मिक विचारों की थी) थी.  भाई का नाम माथुर दास  थापर था. सुखदेव थापर की मृत्यु 23 मार्च सन 1931 में हुई थी. 

दुर्भाग्य से सुखदेव जब 3 वर्ष के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था और उनका लालन-पालन इनके ताऊ लाला अचिंतराम ने किया. आर्य समाज से प्रभावित थे, तथा समाज सेवा व देशभक्ति पूर्ण कार्यों में अग्रसर रहते थे जिसका प्रभाव सुखदेव पर भी पड़ा. शाम के समय जब बच्चे गली मोहल्ले में खेलते थे तो सुखदेव स्पर्शे कहे जाने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान किया करते थे.

मलिक जो एक इतिहासकार हैं के अनुसार सुखदेव ने युवाओं में ना सिर्फ देशभक्ति का जज्बा भरने का काम किया बल्कि स्वयं भी क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे. 

सन 1928 में  हुई घटना में सुखदेव थापर का नाम प्रमुखता से जाना जाता है, इस घटना में यह हुआ था कि जब क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए गौरी हुकूमत के कारिंदे पुलिस उपाधीक्षक जेपी सांडर्स को मौत  के घाट उतार दिया था.  उनकी इस घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था और पूरे देश में क्रांतिकारियों की जय जयकार होने लगी थी.  सांडर्स की हत्या के इस मामले को ‘ लाहौर षड्यंत्र’  के नाम से जाना जाता है. इस  मामले में राजगुरु, सुखदेव थापर और भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी.

जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य नायक रहे, सन 1919 में हुए जलियांवाला बाग के भीषण नरसंहार के कारण देश में है तथा उत्तेजना का वातावरण बना हुआ था उस समय सुखदेव की उम्र 12 वर्ष की थी. और पंजाब के प्रमुख नगरों में मार्शल लॉक लगा दिया गया था स्कूलों तथा कॉलेजों में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय छात्रों को सैल्यूट करना पड़ता था.

सुखदेव थापर ने ऐसा करने से मना कर दिया था जिस कारण उन्हें मार भी खानी पड़ी थी.  लायलपुर  के सनातन धर्म हाई स्कूल में से मैट्रिक पास करने के बाद सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में  प्रवेश लिया था. नेशनल कॉलेज में सुखदेव की भगत सिंह से भेंट हुई जो कि दोनों एक  ही राह के पथिक थे. शीघ्र ही दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी और दोनों ही अत्यधिक कुषाण और देश के तत्कालीन समस्याओं पर विचार करने वाले व्यक्ति थे. 

इन दोनों के इतिहास के प्राध्यापक ‘जयचंद्र विद्यालंकार’  थे.  यह इतिहास को बड़ी ही देशभक्ति पूर्ण भावना से पढ़ाते थे. 

सुखदेव थापर को फांसी- Sukhdev Thapar Hanged

Sukhdev Thapar/सुखदेव थापर की मृत्यु का प्रमाण पत्र-

26 अगस्त सन 1930 को अदालत ने Sukhdev Thapar को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302,  तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4  और 6F  तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया था. 

7 अक्टूबर सन 1930 को अदालत के द्वारा 68 पेजों का निर्णय लिया गया था जिसमें सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई. 

 इन सबके बाद सुखदेव की फांसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई जो 10 जनवरी 1931 को रद्द कर दी गई. इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फरवरी 1931 को अपील दायर की वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फांसी की सजा को माफ कर दे.

 महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को भगत सिंह की फांसी की सजा माफ करवाने हेतु वायसराय से बात की थी 18 फरवरी  1935 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने विभिन्न तबकों के साथ सजा माफी के लिए अपील दायर की.  भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था.

 23 मार्च सन 1931 को शाम में करीब 7:33 पर सुखदेव भगत सिंह और राजगुरु को फांसी दे दी गई फांसी पर जाने से पहले लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे, परंतु जब उनसे पूछा गया  कि उनकी आखिरी इच्छा क्या है तो उन्होंने कहा कि वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें पूरी करने का समय दिया जाए.  यह कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फांसी का वक्त आ  चुका है,  तो उन्होंने कहा था- “रुकिए!  पहले क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो  ले!  फिर 1 मिनट बाद किताब की और उछाल कर बोले-” ठीक है अब चलो”.

जब उन तीनों को फांसी लगने जा रही थी फांसी पर जाते समय मस्ती से गा रहे थे और उनके इस प्रकार थे- “ मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे”.  “मेरा रंग दे बसंती चोला ,माए रंग दे बसंती चोला”

इन तीनों की फांसी के बाद कोई आंदोलन न भड़क जाए इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किए फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गए थे जहां जी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया गया था. गांव के लोगों ने आग जलती देखी तो वह आग के करीब आए, जिसके डर से अंग्रेजों ने आधी जली लाश के टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गए.  गांव वालों ने इनके मृत शरीर के टुकड़ों को एकत्रित कर विधिपूर्वक दाह संस्कार किया. 

दाह संस्कार होने के बाद भगत सिंह हमेशा के लिए अमर हो गए इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ साथ गांधी जी को भी इनकी मौत का जिम्मेदार समझने लगे.  जिस कारण से जब गांधी कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया था, यही नहीं  एकाध जगह पर गांधी जी पर हमला भी हुआ,  सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस की वजह से उन्हें कुछ नहीं हुआ.

सुखदेव थापर पर पूछे जाने वाले प्रश्न इस प्रकार हैं जिनके उत्तर भी आपको दिए गए हैं-

 प्रश्न– सुखदेव थापर का जन्म कब हुआ था?

उत्तर–  सुखदेव थापर का जन्म 15 मई सन 1907  को हुआ था.

 प्रश्न–  सुखदेव थापर के पिता का क्या नाम था?

 उत्तर–  सुपर के पिता का नाम रामलाल  है. 

 प्रश्न–   सुखदेव थापर की माता का क्या नाम था?

 उत्तर– सुखदेव थापर की माता का नाम  रल्ला देवी था.

 प्रश्न–  सुखदेव थापर की मृत्यु कैसे हुई?

 उत्तर–  सुखदेव को फांसी दी गई थी जिससे उनकी मृत्यु हुई. 

 प्रश्न-  सुखदेव थापर को  फांसी क्यों दी गई थी?

 उत्तर–  सुखदेव थापर  को सांडर्स की हत्या के मामले में फांसी दी गई थी.

 प्रश्न- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर कौन है?

 उत्तर- यह तीनों भारत के क्रांतिकारी हैं जिन्होंने भारत के आजादी के लिए अपनी जान दे दी.

Disclaimer- आशा करती हूं आपको यह Sukhdev Thapar पर आर्टिकल बहुत अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा,और पसंद भी आया होगा. इस लेख के माध्यम से हमने सुखदेव थापर के जीवन के बारे में बहुत कुछ जाना उनका जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक का हमें इस आर्टिकल में पता चल गया है.  यदि आप इसी तरह के और भी जीवन परिचय जानना चाहते है  तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको किस व्यक्ति के जीवन के बारे में जानना है और इस लेख को आप किसी भी सोशल मीडिया  जैसे- फेसबुक इंस्टाग्राम टि्वटर इत्यादि में शेयर कर सकते हैं.

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