नमस्कार, दिवाली पर कविता (Poems on Diwali in Hindi 2024) आज के इस लेख में आपका दिल से स्वागत हैं। दीपों के पर्व दीपावली को भारतवर्ष समेत दुनियां के लगभग सभी देशों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। पांच दिनों के इस दीपोत्सव के दौरान भक्तिमय वातावरण बन जाता हैं। आज के लेख में हम दिपावली के त्यौहार पर आधारित हिंदी की सुंदर कविताएँ आपके साथ साझा करेंगे।
Top 10 Poems on Diwali 2024 in Hindi, दिवाली का त्यौहार रोनक ला देने वाल त्यौहार होता है। दिवाली का यह पर्व हिन्दूओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, जिसे सभी बहुत ही अच्छे से मानते है।
दिपावली, भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है, इस दिन को रोशनी का त्यौहार भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम अपने 14वर्ष के वनवास को पूर्ण कर अयोध्या लौट आए थे। श्री राम के अयोध्या लौटने की खुशी में आयोध्यावासियों ने पूरे अयोध्या नगरी को मिट्टी के बने सुंदर-सुंदर दीयों से सजा दिया था और पूरी नगरी को प्रकाशमान कर दिया था।
दिपावली के शुभ अवसर के लिए आपको इस लेख में 10 कवितायें दी गई है। जो दिपावली के त्यौहार को और भी रोशन बना देने वाली है। दिवाली पर कवितायें कक्षा 5 से लेकर 12 तक के विध्यार्थियों के लिए मददगार है।
- जगमग-जगमग
हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!
पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!
राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग….
(सोहनलाल द्विवेदी)
- बुझे दीपक जला लूँ
सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!
क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!
भीत तारक मूँदते दृग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता,
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!
लय बनी मृदु वर्त्तिका
हर स्वर जला बन लौ सजीली,
फैलती आलोक-सी
झंकार मेरी स्नेह गीली,
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ!
देख कर कोमल व्यथा को
आँसुओं के सजल रथ में,
मोम-सी साधें बिछा दी
थीं इसी अंगार-पथ में
स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ!
अब तरी पतवार ला कर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना !
ज्वार को तरणी बना मैं;
इस प्रलय का पार पा लूँ!
आज दीपक राग गा लूँ …
(महादेवी वर्मा)
Best 10 Poems on Diwali 2024 in Hindi
- आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,
है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,
कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,
किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ….
(हरिवंशराय बच्चन)
- आओ फिर से दिया जलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोह-जाल में
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएँ…
(अटल बिहारी वाजपेयी)
आज अन्धकार भी लगता प्यारा
दीपों के समूह से लगता बेचारा,
नन्हें दीपों से ये आज है हारा
दीपों से हारी वमिनी काली,
देखो सखा आई दिवाली।
जाने… दिवाली शुभ मुहूर्त, लक्ष्मी पूजन का समय
Top Poems on Diwali 2024 for Class 5,6,7,8,9,10,11, and 12 in Hindi
5. देखो सखा आई दिवाली /dekho Sakha Aai Diwali Poem
जो सब जन के मन को भायी
सोंधी सी महक आँगन में लायी,
संस्कृति, परंपरा पुनः दोहराकर
अपनी मर्यादा बहनों ने संभाली,
देखो सखा आई दिवाली।
मित्रों ने द्वार पर दीप रखा
सहसा दौड़ा आया एक सखा,
लिए पटाखे, चकरी था दृश्य अनोखा
चकरी की रौशनी मानो भानू लाली,
देखो सखा आई दिवाली।
प्रफुल्ल हुए दृश्य देख मेरे नैना
अगाध स्मृति क्षण लायी थी रैना,
मनमोहक से थी दीपों की सेना
दीपों की थाली हुयी न खाली,
देखो सखा आई दिवाली।
पटाखे, चकरी दिए मुझे मेरे तात
चकरी चलायी रोशन हुयी रात,
मन ही मन सोचू न हो प्रभात
दिवाली सच में मन मोहने वाली,
देखो सखा आई दिवाली।
गूँज रहे हैं चारों दिशाओं में गीत
मानो असत्य पर हुयी सत्य की जीत,
आज बने अपने दुशमन भी मीत
सुविचारों का वरदान प्रकृति दे डाली,
देखो सखा आई दिवाली।
लुप्त हुए अम्बर से तारे
दीप बन गए वसुधा पर सारे,
निशा के समस्त सहचर हैं हारे
रात हुयी है मतवाली,
देखो सखा आई दिवाली।
थम सा जाये क्षण, थी अभिलाषा
जन-जन की मधुर प्रेम की भाषा,
छंट गयी थी सबकी निराशा
चारों ओर फैली खुशहाली,
देखो सखा आई दिवाली।
6. साथी, घर-घर आज दिवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का,
देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली…
(हरिवंशराय बच्चन)
Top 10 Poem on Diwali 2024 in Hindi
7. आयी दिवाली आयी
रात अमावस की तो क्या,
घर घर हुआ उजाला,
सजे कोना कोना दिपशिखा से!
मन मुटाव मत रखना भाई,
आयी दिवाली आयी !
झिलमिल झिलमिल बिजली की,
रंगबी रंगी लड़िया
दिल से हटा दो फरेब की फुलझड़िया!
दिवाली पर्व हैं मिलन का,
नजर पड़े जिस और देखो
भरे हैं खुशियों से चेहरे !
चौदह बरस बाद लौटे हैं,
सिया लखन रघुराई
दिवाली का दिन हैं जैसे,
घर में हो कोई शादी!
8. आओ फिर से दिया जलाएँ (Diwali 2024)
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
(अटल बिहारी वाजपेयी)
9. दीप से दीप जले
दीप से दीप जले
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।
गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।
उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।
वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।
युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।
(माखनलाल चतुर्वेदी)
10. दीपदान (Deepdaan Diwali Poem)
जल, रे दीपक, जल तू
जिनके आगे अँधियारा है,
उनके लिए उजल तू।
जोता, बोया, लुना जिन्होंने
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने
बत्ती बँटकर तुझे संजोया,
उनके तप का फल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
अपना तिल-तिल पिरवाया है
तुझे स्नेह देकर पाया है
उच्च स्थान दिया है घर में
रह अविचल झलमल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
चूल्हा छोड़ जलाया तुझको
क्या न दिया, जो पाया, तुझका
भूल न जाना कभी ओट का
वह पुनीत अँचल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
कुछ न रहेगा, बात रहेगी
होगा प्रात, न रात रहेगी
सब जागें तब सोना सुख से
तात, न हो चंचल तू
जल, रे दीपक, जल तू…
(मैथिलीशरण गुप्त)
आशा करती हूँ आपको यह दिवाली (Poems on Diwali 2024)पर कवितायें पसंद आई होंगी. इन कविताओं को आप अपने दोस्तों के साथ साझा कर सकते है.